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________________ BAAP हनुमानुत्पत्ति दोहा आज्ञा पाकर भूप की, ले गये वन मंकार | वसन्तमाला और 'जना, छोड दई निराधार ॥ दोनो उस वन खड मे, रोवे आंसू डार | व्याकुलता छाई अति, दर्शत कष्ट अपार ॥ ... अंजना गाना नं० ३५ ... । ३ । दुख पड़ गया हम पर भारा, इस बेइज्जती ने मुझको मारा । बारा वर्ष पति की जुदाई, मुश्किल से बनी थी रसाई || फिर गर्भ ये मैने धारा, इस बेज्जती । १ । फिर सासने ताने मारे, वो भी सहन किये मैने सारे | आखिर काला मुंह करके निकाला, इस बेज्जती । २ । पिता पालक भी हो गया उल्टा, माता भाई भी ना कोई सुलटा । अब तो श्राशा भी कर गई किनारा, इस बेज्जती जिस माता के था जन्म धारा, हाय उसने दिया ना स पति भी परदेश सिधारा, इस बेज्जती ने सुझको मारा | ४ | खिला किस्मत का यह फिसाना, मेरा शत्रु बना कुल जमाना । प्रभु तेरा ही एक सहारा, इस बेज्जती ने मुझको मारा । ५ । कौन धीर वंधावे हमारी, इस बन खण्ड के मझधार विना धर्म ना कोई हमारा, इस बेज्जती । ६। कहां संग सहेली हमारी, पास रहती थी हर वारी । सब किया है किनारा, इस बेज्जती .." 1 ... .. । ७ । १२७ दोहा ( वसन्तमाला ) रानी जी धीरज धरो, तुम हो गुण गम्भीर । रोने से कुछ ना बने, हरो धीर से पीर ॥
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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