SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रामायण दोहा रण में जुट गये शूरमा, पडी लंक मे त्रास । हाहाकार करने लगे, तज जीने की आस ।। पैदल से पैदल लड़ते है, दारू गोलो का पार नहीं। कही रक्त फुवारे चले सरासर, दल बल का शुम्मार नहीं । शक्ति देख दर्शकंधर की, शस्त्र योद्धों ने डाल दिये। जीत लॅक स्वाधीन करी, सब मात मनोरथ सार दिये। ___ गाना नं० ११ (तर्ज-इस हवन कुण्ड पे रे सिया ॥) देश अपने को हम ने रे पूर्ण स्वतन्त्र बनाया है। मना रे, हर्ष हृदय न समाया है ॥ टेक ॥ बाल पने मे जो साता ने शिक्षा हमे दई थी, देश धर्म गुरु जन भगति शुभ हृदय समा गई थी। चरितार्थ हुई सवरे, खुशी का बादल छाया है ॥ १॥ प्रेम एकता ही दुनिया मे जीवन कहलाता, खेद नर खर श्वान पशु तुल्य वृथा मर जाता। है नाम उन्ही का रे, धर्म हित सर्वस्व लाया है ।। २ ।। धर्म न्याय लिये जीना मरना भगवन बतलाया, स्वर्ग अपवर्ग निर्मल होकर उसने ही पाया । सचिदानन्द पद रे सदा वीरो ने पाया है ॥ ३ ॥ शान्त वीर रस धारण कर, कर्तव्य को पहिचानो।। शुक्ल शुद्ध व्यवहार सहित अध्यात्म को जानो। यह रंग विरंगी रे सभी पुदगल की माया है ॥४॥ इति ॥ चौपाई चर्म शरीरी धनदत्त राया । सम्यक् चारित्र चित लाया ।। शत्र मित्र पर सम परिणाम । तप जप कर पाया सुख धाम ।।
SR No.010290
Book TitleJain Ramayana Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShuklchand Maharaj
PublisherBhimsen Shah
Publication Year
Total Pages449
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy