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________________ था। उसने रमणको ही दत्त समझा और उसको जगा कर उसके साथ संभोग किया। उसके पीछे ही शाखाका पति विनोद भी आया। उसने रमणको मार डाला । शाखाने रमणकी छुरीसे विनोदको भी मार डाला। वे दोनों फिरसे चिरकालतक भवभ्रमण करते रहे। फिर, विनोद एक धनाढय वणिकका धन नामा पुत्र हुआ। रमण भी उसी धन नामा सेठकी स्त्री लक्ष्मीकी कूखसे भूषण नामा पुत्र हुआ। उसको बत्तीस श्रेष्ठी-कन्याएँ ब्याही गई। वह उनके साथ आनंदसे सुखोपभोग करने लगा। एक दिन रात्रिके चौथे प्रहरमें वह अपने मकानकी छतपर बैठा हुआ था; उसी समय श्रीधर नामा मुनिको केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । देवताओंने मुनिका केवलज्ञान महोत्सव प्रारंभ किया। 'उसने महोत्सवको देखा । उसको देखकर, भूषणके हृदयमें धर्मभाव जागृत हो आये । वह उसी समय उतरकर, मुनिको वंदना करनेके लिए गया । मार्गमें जाते हुए, सर्पने काट खाया । शुभ परिणामा सहित उसकी मृत्यु हुई । चिरकालतक शुभ गतियोंमें भ्रमण करता रहा। फिर वह जंबू द्वीपके अपर विदेह क्षेत्रके रत्नपुर नगरमें अचल नामा चक्रवर्तीकी स्त्री हरिणीके गर्भसे पुत्र होकर जन्मा । प्रियदर्शन उसका नाम हुआ। धर्ममें उसकी बहुत अभिरुचि थी । बचपनहीसे वह दीक्षा लेना चाहता था, मगर पिताके आग्रहसे तीन हजार कन्याओंके साथ उसने
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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