SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 415
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७६ जैन रामायण आठवाँ सर्ग। रानी थी । वह श्रुतिरति पुरोहित पर आसक्त थी। एक चार उस दुर्मति रानीको शंका हुई कि-राजाको मेरा और श्रुतिरतिका संबंध ज्ञात होगया है । इस शंकाको उसने सत्य समझा । उसने सोचा-राजा नाराज होकर, हमें मार डालेगा; इस लिए वह हमें मारे उसके पहिले ही उसको मार देना उत्तम है। फिर श्रीदामाने श्रुतिरतिकी सलाह लेकर, अपने पति कुलंकरको मार डाला । कुछ काल बाद श्रुतिरति भी मर गया । चिरकालतक नाना भाँतिकी योनियोंमें गिरकर, दोनों संसारमें भ्रमण करते रहे। कितना ही काल बीत गया । फिर वे दोनों राजगह नगरमें कपिल नामा ब्राह्मणकी स्त्री सावित्री की कूखसे युग्म सन्तान-पुत्र-रूपसे उत्पन्न हुए । उनका नाम विनोद और रमण हुआ। रमण वेदाध्ययन करनेके लिए देशान्तरमें गया । कुछ कालके बाद वह वेदाध्ययन करके वापिस आया। जब वह राजगृह नगरमें प्रवेश करना चाहता था, उस समय रात बहुत चली गई थी । इसलिए उसको, अकालमें आया समझ, दर्वानने शहरमें नहीं घुसने दिया। अतः सर्वसाधारणके काममें आने योग्य, वहाँ एक यक्षका मंदिर था उसमें जाकर, वह रात्रि निर्गमन करनके लिए, रहा। • उसी समय विनोदकी स्त्री शाखा, दत्तके साथ जार कर्म करनेका संकेत कर, उसी मंदिरमें आई । दत्त नहीं आया
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy