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________________ राम लक्ष्मणकी उत्पत्ति, विवाह और वनवास । १९७ _इस भाँति युक्ति वचनोंसे माता कौशल्याको समझा, दूसरी माताओंको भी नमस्कार कर राम बाहिर निकले । __पश्चात सीता दूरहीसे दशरथ राजाको नमस्कार कर, 'अपराजिता देवीके पास गई, और रामके साथ वनमें जानेकी उन्होंने आज्ञा माँगी।। ___ अपराजिता देवी जानकीको गोदमें बिठा, बालाकी भाँति किंचित उष्ण नेत्रजलसे स्नान कराती हुई बोली:" हे वत्से ! विनीत रामचंद्र पिताकी आज्ञासे वनमें जाता हैउस, नरसिंह, पुरुषके लिए यह कुछ कठिन नहीं है । परन्तु तेरा तो जन्मसे ही देवीकी भाँति, उत्तम वाहनोंमें लालन हुआ है, फिर तू पैदल चलनेकी व्यथा कैसे सह सकेगी ? कमलके उदर समान, सुकुमारतासे, तेरा शरीर कोमल है; वह जब आताप आदिसे पीड़ित होगा, तब रामको भी क्लेश होगा । इस लिए पतिके साथ जाने, और अनिष्ट कष्ट सहनेके लिए, न मैं निषेध ही करनेकी * उत्सुकता रखती हूँ और न आज्ञा ही देने की।" यह सुनकर, शोक रहित सीता प्रातःकालीन विकसित । * कमलके समान प्रफुल्ल मुख हो, अपराजिताको नमस्कार कर बोली:-" हे देवी, भेषके पीछे सदैव बिजली रहती है, इसी भाँति मैं भी रामके साथ जाती हूँ । मार्गमें यदि · कुछ कष्ट होगा तो, आपके ऊपर जो मेरी भक्ति है, वह उसे दूर कर देगी।"
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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