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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाटिक होवे, नृप कहे तुन मदारी, राए नारयो धरति अंगज तोय प्रसन्न, एम आगम पाणी निमुणो ते धनधन्न ॥ ३॥ तव सासन देवे धरयुं सिंघापग तास, राजाने राणो मन हुवो हरख उल्लास, रोहोणि तप कारक इम लहो चित अभंग, बुध हंसविजय शिष्य धारने मुख संजोग ॥ ४ ॥ - - ' गंधारे माहावीरस्वामीनी थोय विख्यते ॥ गंधारे महावीर निगदा, जेहने सेवे सुरनर वृंदा, दिठेशू परम आणंदा, चैतर सुद तेरस दिन जाया, छपन्नदिग कुमरो हुलराया, हरप धरीने बोलाया ॥ त्रीस वरस पाली घरवास, मृग शिर शुदि दशमो वृत जास, विचरे मनने उल्लास, एह जिन सेवो हितकर जाणी, एहथी लहीए शिव पटराणी. पुन्य तणी एह खाणी ॥ १ ॥ रोषभ जिणेसर तेर भव सार, चंद्र प्रभु भव सात उदार, सांति कुमार भत्र बार, सुनिसुव्रतने नेमकुमार, ए जोनना नव नव भव सार, दश भव पास कुमार ॥ सतावीस भव वीरना कहीए, सचर जोनना त्रिण त्रिण लहीए, जीन वचने सहीए, चोवीस जीननो एह वीचार, एहथो लहीए भवनो पार, नमतां. जय जय. कार ॥ २ ॥ वैशाप शुद्ध दशमी लही ज्ञान, सिंहासन बेठा वर्द्ध मान, दे उपदेस प्रधान, अग्नीकुणे हधे परषदा कहीए, साधवी वैमानोक स्त्री भणीए, मुनिवर त्यांडीज गणीए, यंतर जोतीषी भुवनपती सार, नैरुत्य कुणे एहनो अधिकार, वायुकुंणे पहनी For Private And Personal Use Only
SR No.010287
Book TitleJain Prachin Stavanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
PublisherUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
Publication Year1916
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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