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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achan Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७ नार, इंशाने सोहे नर नार, वीबुध वैमानिक परषदा बार, सुणो जीन वचन उदार ॥ ३ ॥ चक्केसरा जांभा दूरी पारो, काली महाकाली मनोहारो, सामा सांतासाग। ज्याला सुता रह्या अच्चुभा श्रीवत्सापरवरायो चउहा, अशोकासिरि सुखादो ॥ पन्नती वरच्या धरणी, दत्तागंधारो ने नीलवरणी, अंबः पउमा सुखकरणी, ॥ सिधाई सासननो अधिकारी, कनक.वजय बुध आणंदकारी, जसविजय जयकारो ॥ ४॥ ॥ वीसस्थानकतपनी स्तुति ॥ पूछे गौतम वीर जिणंदा, समवसरण बेठा सुखकंदा, पूजित अमर मुरिंदा, केनिकाचे पद जि. चंदा, किणविध तप करता बहु फंदा, टाले दुरित ददा; तव भाखे भुजी गत निंदा, सुण गौतम वमुभूतिनंदा, निर्मळ तप अदि वीस स्थानक तप करत महिंदा, नीम तारक समुदाइ चंदा, एसवि तप इन्दा, ॥१॥ प्रथम पदे (१, अरिहंत नमीजे, बीज गिद्ध (३) पवयणपद त्रीजे, (४) आचारज (५, थिर ठवीजे, :६, उपाध्यायने (७) साधु ग्रहीजे, (८) नाण, (९) देसण पद, १ ) विनय वहीजे, (११) इग्यारमे चारीत्र लीजे, (१२) बंभवय आरोणं गणीजे, (१३) कोरीयाणं, (१४) तवस्स करीजे, (१५ गौतम; [१६] जीणाणं लहीजे, (१७) चारोत्र, [१८] नाण, [ . सुअस्स, (२०) तित्थस्सकीजे, बीजे भव तप करत सुणीला विजोन तप लोज, ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.010287
Book TitleJain Prachin Stavanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
PublisherUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
Publication Year1916
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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