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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૩૯ર્ષ मंघर जिन संपति केवली, विचरंता जग जयकारीजी, बीज तणे दिन चंद्रने विनवू, वंदन केहेजो अमारोगी ॥१॥ जंबुद्विपमा चार जिनश्वर, घातकोखंडे आठजी, पुष्कर अरघे आठमनोहर एहवो सिद्धांते पाठजी, पंचमहाविदेहथइने, विहरमान जीन विसजी, जे आराधे विज तप साधे, तस मन हुइ नगीसजी ॥२॥ समवसरणे बेसीने वखाणी, सुणो इंद्र इंद्राणीजी, श्री सीमंधर जिन पमुखनी वाणी, मुज मन श्रवणे मुहाणीजी, जे नर नारो समकोत धारी, ए वाणी चिन धरशेजी, बीज सणो महिमा सांभळता, केबळ कमळा वरशेजी ॥ ३ ॥ विहरमान लिन सेवा कारी शासन देवी सारीजी, सकळ संघने आनंदकारी, गंछित फळ दातारीजी, विज तणो तप जे नर करशे, तेहनी तुं रक्षावालीजी, वीरसागर कहे सरस्वती माता, दीओ मुज वाणी रसालजी ॥४॥ इति, ॥ अथ रोहीणीनी थोयो॥ वासुपूज्य जीणेसर पुनो मनने रंग, रोहीणी नक्षत्रे उपवास करो अतिचंग, सात वरस ए उपर सात मास परीमाण, ए तफ रोहीणीनो आपे मानन ठाम ।। १ ।। श्री वासुपूज्य जोन अंगन नरपति मघवा नाम, तस परिन लक्ष्मी तस तनया अभिराम, रो. हीणी जोवनवति परणी राय असोक, एम सयल जिणेसर, भांखे बुझंवा लोक ॥२॥ सुंदरी एक रडती देखी पुछे नारी, कुण For Private And Personal Use Only
SR No.010287
Book TitleJain Prachin Stavanadi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
PublisherUjamshi Thakarshibhai Ahmedabad
Publication Year1916
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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