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________________ (६७) वीश नोकरवाली गुणी बे हजार गुणगुं गुणवू, अने पूर्वोक्त विधि सर्व करवो, तथा श्रीअरिहंतना बार गु गले ते एकेका गुणने याद करी ते ते गुणना ना मोच्चारपूर्वक खमासमणा देई बार नमस्कार करवा, ते आवी रीतें:१ श्रीअशोकवृद प्रातिहार्यशोनिताय श्रीमदर्हते २ जानुदनपंचवर्ण पुष्पप्रकरप्रातिहार्यशोनिताय ३थतिमधुरव्यमाधुर्यतोपि मधुरतमदिव्यध्वनिप्राण ४ हेमरत्नमस्थितजडितअत्युज्ज्वलचामरयुगल वीजितव्यजनक्रिया युक्तसत्प्रातिहार्यशोनिताय ५ सुवर्णरत्नजडित सदासहचारिसिंहासनसत्प्राति ६ तरुणतरणितेजसोऽप्यतिनास्वरतरतेजोयुक्तनामं मलसत्प्रातिहार्यशोनिताय श्रीमदर्हते नमः ॥ ७ इंनिप्रनृत्यनेकाकाशस्थितवादितवाजित्रवाद नरूपसत्प्रातिहार्यशोनिताय श्रीमदर्हते नमः॥ ७ मुक्ताजालकुंबनकयुक्तमत्रत्रयसत्प्रातिहार्यशो ए स्वपरापायनिवारकातिशयधराय श्रीमदर्हते नमः १० पचत्रिंशत्रुणयुक्तायसुरासुरदेवेंश्नरेंशणां पूजाति शयधराय श्रीमदर्हते नमः॥ ११ सर्वनाषानुगामिसकलसंशयोबेदकवचनातिशयध राय श्रीमदर्हते नमः ॥ १२ लोकालोकप्रकाशकेवलझानरूपझानातिशयैश्वर्य धराय श्रीमदर्हते नमः ॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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