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________________ (६६) वसें अत्यंत सावध आरंन न करे, असत्य न बोले, आखो दिवस तपपदनुं गुणकीर्तन करतो रहे. तथा तपना दिवसें पोसह करे, तो पारणाना दि वसें श्रीजिननक्ति करीने पारणुं करे, अने जो तपना दिवसें पोसह न करे तो ते दिवसे श्रीजिननक्ति करे, करावे जावना नावे तथा तपना दिवसें जे पदमुंआ राधन करतो होय ते पदना जेटला गुणनेद होय ते संख्या प्रमाणे कानस्सग्ग करे,अने तावन्मात्र तद्गुण स्मरणपूर्वक खमासमण देश वंदना करे ते पदनो महि मा गुण याद करीने उदात्त स्वरें स्तवना करे, हर्षित थको रहे. एवा प्रकारना विधिथी वीरे उनी क रवी, तथा वीशे उनीमां एकेका पदना उत्सव.महो त्सव,प्रनावना, उजमणां वगेरे श्रीजिनशासननी न नतिना हेतुयें करवां जोयें, पण जो पर्दे पदें उज मणादि करवानी शक्ति न होय; तो एक उजी तो विशेप उत्सव नजमणादिक सहित अवश्य करवी जोयें. ए सामान्यथी विधि कह्यो. हवे इहां स्थानक पद आराधक सऊनोने जाण वाने अर्थे प्रथम श्रीअरिहंत पद आद्यमां ने, माटे तेने आराधवानो विशेष विधि लखी देखाडियें बैयें. जे दिवसें श्रीवीशस्थानक तप सामान्य प्रकारें न चरे, ते दिवसेंज प्रथम श्रीअरिहंत पद विधिपूर्वक नच्चरे, माटे ते दिवसें श्रीजिनेश्वरनी महोटी नक्ति करे. इहां प्रथम पदें “मो अरिहंताएं” ए पदनी
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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