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________________ ( 2 ) त ॥ ४ ॥ कव वाडी वावीयां, कवणें गूंच्यां फूल ॥ कवणें जिनवर चढावियां, नाव सरीसां मूल ॥ ५ ॥ वाडी वेलो मोहोरीन, सोवन कुंपली एल. ॥ पास जिसेसर पूजियें, पंचे अंगुलीए ॥ ६ ॥ दो धोला दो सामला, दो रत्तोप्पलवन्न ॥ मरगयवन्ना पुन्नि जिल, सोलस कंचनवन्न ॥ ७ ॥ नियनियमान क राविया नरहेसनयणानंद ॥ ते में जावें वंदिया, ए चवीस जिद ॥ ८ ॥ वतु ॥ कम्म नूमिहिं, कम्म चूमिहिं, पढम संघयपि, नक्कोसो सत्तरिस जिणवरा विहरंत लग्न, नव कोडी केवली, कोडि सदस्स नव साहु गमइ || संपइ जिएमवर वीस मुणे ॥ विदु कोडीहिं वरना, समाह कोडी सहस्स हुआ, धु सुं नित्र विहाणि ॥ जयन सामी.जयन सामी, रिसह सिरि सत्तुंजि, नविंत पहु नेमिजिए ॥ जयन वीर सच्चरिमंण ॥ रुवहिं मुपि सुन्वय, मुहरि पास हरिय खंमण, अवर विदेहिं तिबयरा, चिहुं दिसि विदिसि जिं के वि, तीच्णागयसंपई, वडुं जि सवेवि || सत्तावर सहस्सा, लरका उप्पन्न ग्रह को डी ॥ पंचसयं चतिसा, तियलोए चेइए वंदे ॥ इति ॥ ॥ अथ आदिजिन स्तवन ॥ ॥ ते तरिया रे नाई ते तरिया || . ए देशी ॥ || श्रादिजिनं वंदे गुणसदनं सदनंतामलबोधं रे ॥ बोधंतागुण. विस्तृतकीर्ति, कीर्तितपथम विरो धं रे || यदि जि० ॥ १ ॥ रोधरहित विस्फुरडुपयो "
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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