SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥ अ५॥ ॥ श्री नवकार मांगलिकरूप ॥ ॥ नमो अरिहंताणं॥१॥ नमो सिधाणं ॥२॥ नमो प्रावरियाणं ॥३॥ नमो ज्वप्नायाणं ॥ ४ ॥ नमो लोए सब सादणं ॥ ५ ॥ एसो पंच नमुक्कारो ॥ ६ ॥ सब पावप्पणासणो ॥ ७ ॥ मंगलाणं च स वेसिं ॥ ७ ॥ पढमं हो। मंगनं ॥ए । ति पंच प रमेष्ठि मंगलम् ॥ एमां पद नव , संपदा आठ ले ॥ ॥अथ खमासमण अथवा प्रणिपात ॥ ॥ नामि खमासमणो वंदिनं जावणिजाए ॥ नितीदियाए ॥ मबएण वंदामि ॥ ॥अथ चैत्यवंदन॥ ॥जाकारेण संदिसह नगवन् चैत्यवंदन कर ॥ इलं, जय जय महाप्रनु ॥ देवाधिदेव, सर्वज्ञ श्रीवी तराग देव ॥ मुह दिठं परमेसर, सुंदर सोम सहाव, नूरि नवंतर संचिठ, नहो सो सवि पाव ॥१॥ जे में पाप कियां बाला पणे, अहवा अन्नाणे ॥ अमन वंतर ॥ सो सो खंग, जयो परमेसर ॥ तुह मुह दि सिरि पास.जिरोसर॥ २ ॥ पास पसी पसाठक रि, वीनतडी अवधार ॥ संसारडो बिहामणो, सामी आवागमण निवार ॥ ३ ॥ हबडा ले सुलरकणा, जे जिनवर पूजंत ॥ एके पुरमें बाहिरा, परघर काम करं
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy