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________________ (३) गं, योगं दधतमनंगं रे ॥ नंगं नय व्रजपेशलवाचं, वाचं यमसुरव संगं रे ॥ आदि० ॥ २ ॥ संगत पद शुचिवचनतरंगं, रंगं जगति ददानं रे ॥ दान सुरफुम मंजुल हृदयं, हृदयंगम गुणनानं रे ॥ आदि० ॥ ३ ॥ जानंदित सुरवर पुन्नागं, नागर मानसहंसं रे ॥ हंसगति पंचमगति वासं, वासव विहितारांसं रे ॥ श्रा० ॥ ४ ॥ शंसंतं नयवचनम नवमं, नवमंगल दातारं रे ॥ तार स्वरमघघनपव मानं, मानसुनट जेतारं रे ॥ आ० ॥ ५ ॥ वं स्तुतः प्रथमतीर्थपतिः प्रमोदा, श्रीमद्यशोविजयवाच कपुंगवेन ॥ श्रीपुंगरीकगिरिराज विराजमानो, मा नोन्मुखानि वितनोतु सतां सुखानि ॥ ६॥इति संपूर्ण ॥अथ शीतलजिन स्तवन । ॥ वारि प्रजु दशमा शीतल नाथ, सुणो एक वीन ति रे लोल ॥ के वारि प्रनु माहारे तुमझुं प्रीत, के अवरझुं पाखडी रे लोल ॥१॥ के वारिप्रनु नदिल पुर अवतार, के दृढरथ राजियो रे लोल ॥ के वारि प्रनु नंदा मात मलार, के कुलमां गाजीयो रे लोल ॥ २ ॥ के वारि प्रनु श्रीवह संबन पाय, के प्रनुजी ने दीपतुं रे लोल । के वारि प्रनु चंद कहे कर जोड, के अविहड रंगा रे लोल ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ अथ विमल जिनस्तवन ॥ कुंबखडानी देशी ॥ ॥ विमल विमल गुण राजता, बाह्य अन्यंतर नेद ॥ जिणंद जुहारीएं ॥ सूची पुला दृष्टांतथी,
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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