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________________ सात साज माएास साधें हता. ५०० पाय सुतार सांधें हता. ३५० भागशेने पय्याशहीबूटियां साधे हता. १... खेडएलर बुहार साथ हता. ܀ भेटला संघना परिवार सहित यात्रायें इश्यां हवे जीन्न पएग महोटा महोटा संसारी अमखां ते सजीयें छैयें. ३५ छत्रीशगढ उराव्या. 5.3 प्रेशर वारसदार्थ ठरवा भाटे संग्रामं यडीनेजस शेरव्युं २४ मोवीश मिश्शाच जी जोलावी. १८ जठार वर्ष व्यापार उथ्यो. खेडहन्नर वर्षासन खाप्यां ४ सार राज्य सेवा करता हता. १८०० खदार बहाए। उराव्याहता. वस्तुपाल तुम पानी पीहारता खो पुस्तस्यां मा मानाजी छे ने जन्य यवनाशिना स्थानमेषांव्यव्यय ते पानैनने ही पाववा माटेन छे से खेमनो यरित्र बांयवाची सम नशे वस्तुपाल संवत पुर७८ मा स्वर्गारोहए। धया ने नेपाल संवत १७०८ मां स्वर्गारोहला थया छे. ऐति श्रेयं. ॥ रजथ लेश्या स्वभाव होहा ॥ परजेश्या उहि लबने, दृष्ण नील अपोता। ते न्ने पछी रास, परिए।। में सज होत ॥था कुडियारा षट खेला, आठ लाडान लूज लगी नज साम्नतर 'हेज्यो सम्स समानणारा कृष्णाधड घटए। उहे, डासा अटए। नीस।। उहे अपोति लघु सिइ ज्योतेनस सीन ॥गा पंच म्हे पहुँच इस सियो, शुडस करे सना लधरती पड़ियां पड़ा इस, स्यो जावो उहे जागा निनही जैसी ऐसिया, तैसा जाये हमे ।। सङ्गुर की गम ने मिसेलव जगतओ लभीपार घति षट्लेश्या स्वरूप होड़ा ।। समाप्त Salinirevie S
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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