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________________ (३१ए) कीधी प्रीति अनंग ॥ शी॥२॥ हेजाले नयरों क र। रे, मलजो मुझने स्वाम ॥ अंतरजामीबो माह रा रे, नवकुःख नंजण ठाम ॥ शी० ॥ ३ ॥ साचो साजन तुं मिट्यो रे, प्रीति कीधी परमाण ॥ हियडे नीतर तुं वस्यो रे, नावें जाए म जाण ॥ शी० ॥ ॥ ४ ॥ धरणीतलमां जोवतां रे, अवर मिट्या मुक लाख ॥ पण ते दुं नहीं आदरुं रे, श्रीपरमेसर साख ॥ शी० ॥ ५॥ सीताने मन रामजी रे, राधाने मन कान ॥ नमरो मालति फूलडे रे, तिम प्रनुगुं मुफ तान ॥ शी० ॥ ६ ॥ रोहिणीने मन चंदलो रे, जिम मोरामन मेह ॥ इंशणीने मन दलो रे,तिम प्र जुगुं मुऊं नेह ॥ शी० ॥ ७॥ अमने तमोरो आ शरो रे, नहि कोई बीजाणुं वाद ॥ साचो सेवक जा शो रे, तो सवि पूरशो लाम ॥ शी० ॥ ७ ॥ अ चलगबने..देहरे रे, मुदरा नगर मजार ॥ महिमा वंत मया करो रे, जवख नंजणहार ॥ शी० ॥ ॥ ए॥ सानिधकारी बो साहेबा रे, प्रणम्यां पातक जाय ॥ सहज सुंदर गुरुरायनो रे, नित्य लान प्रनु गुण गाय ॥ शी० ॥ १० ॥ इति ॥ ॥अथ प्रजातीरागमां स्तवन ॥ ॥प्रनातें उठीने माता मुखडं जोवे ॥ ए देशी ।। ॥ावी रूडीजगति में, पहेला न जाणी॥ पहे लां न जागी रे प्रनु, पहेला न जाणी ॥ संसारनी मायामां में, वलोव्युं पाणी ॥आ॥ ए अांकणी ॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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