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________________ (३१७) ॥ पार्वजिन स्तवन कही नाषामां ॥ ॥ सुघड पास प्रनु रे, दरिसण वेलडोनी दिऊ ॥ दरिसण तोजो लाख टकनजो, लाख टकनजो लाख ट कनजो रे, कामगारा तोजा नेण ॥ सु० ॥ सांही असांजो तुं अंश्ये तुं अंश्ये तुं अंश्ये रे, मिठडा ल गेंता तोजा वेण ॥ सु०॥ द॥१॥ अंघाथकी असी बाविया आविया आविया रे, सफल जनम थेयो अऊ ॥सु० ॥द ॥ मेहेर कज जजी मुंमथे मुंमथे मुंमथे रे, बांहे ग्रहेजी ला ॥ सु०॥ द० ॥ ॥ २ ॥ दिल लगो मुंजो तोमथे तोमथे तोमथे रे, थे से वेंधो कीह ॥ सु० ॥ द० ॥ सजोदी तोके सं नारीयां संनारीयां संजारीयां रे, मीह बापीयडा जीह ॥सु०॥ द० ॥३॥ जगमे देव दठा जजा दग जजा दग जजा रे, तेंमें तुं वमो पीर ॥सुाद ॥ असी वामाजीजे नंदके नंदके नंदके रे, दरिसणे थे यासुं खलो खीर ॥ सु० ॥ ॥४॥ घोरजी वं का तोजे नामथा नामथा नामथा रे, मुगतीजो दा तार ॥ सु० ॥ द० ॥ थरजो गकुर नेटेयो नेटेयो नेटेयो रे, नित्य लानजो आधार ॥ सु॥द ॥५॥ ॥अथ शीतलजिनस्तवनं ॥ ॥ शीतल जिनवर सोनलो रे, गुणनिधि गरीब निवाज ॥ देखी दरीसए ताहेरुं रे, सफल थयो दि न आज ॥ शी॥१॥ सूरत ताहारी सोहामणी रे, लाल अमूलक नंग ॥ जाणीयें कल्पाम सारखो रे,
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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