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________________ (२०३) बंदा० ॥३॥ परम मूरति को प्रनुनी कहेशे, हियडे केम न समाणी ॥ जेम मुकुरमें कुंजर काया, तेम वली मणिमय माणी ॥ बंदा० ॥ ४ ॥ तुं घटप्रनृति प दार्थथी न्यारो, तो कम सदुनें प्यारो ॥ कोश्क यक लकला तुम पासें, तुं जसवेली क्यारो ॥ बंदा ॥ ॥ ५ ॥ कृपाकटादनी कणिका ताहरी, निरखी ह रख्यो हूं तो ॥ तुं अविनाशी ज्योति विलासी. प्रगट जिहां तिहां तूंतो ॥ बंदा०॥ ६ ॥ पंचासर श्रीपास प्रनाकर, ध्याताध्येयें ध्यायो॥रूपविबुधनी करुणायें स्वामी, मोहनविजयें गायो॥ बंदा० ॥ ७ ॥इति ॥ . ॥ अथ नेम जिन स्तवनं ॥ ॥ वीजा सेण मारु ॥ ए देशी ॥ ॥यादवजी हो।समुविजय कुल सेहरो हो।साहेबा माहारी वीनतडी अवधार ॥ मीठा सेण वारु आया॥ विण अक्युग केम बांझियें हो. साहेबान वनव निरुप म नार ॥ मीठा० ॥१॥ या० ॥ तुमथी रूडा पारे वडां हो, साहेबा जोड न खंमे किवार ॥ मीठा० ॥ या॥ उलंनडे लाजो नही हो, साहेबा एहवा श्या नितुर विचार ॥ मीग ॥ २ ॥ या० ॥ विषमा मूंगर सेववा हो ॥ साहेबा परिहरि सुंदरी सेज ॥मी ठा० ॥ या० ॥ मोहोटा पण खोटा सही हो ॥ सा हेबा निपट न तजीयें हेज ॥ मीठा ॥३॥या॥ पावस ऋतुपरें तोरणें हो।साहेबा याव्या करिय अमं ग ॥ मीठा० ॥ या० ॥ पण थया शारद मेदुला हो ।
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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