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________________ (२०२) ॥अथ आदि जिन स्तवनं ॥ फुमखडानी देशीमां॥ ॥आदीसर जगदीसरू रे,अवधारोअरदास।मनोह र साहेबा ॥ साचो मनमेलो मल्यो रे, पलक न बो डं पास ॥ मनो० ॥१॥ उहव्यो पण खीजे नही रे, प्रनु तुं गिरिमा महंत ॥ मनो० ॥ नयनबेगा सङको कहे रे, खंत सूरा अरिहंत ॥ मनो० ॥ २ ॥ नयन अंतर प्रनु ताहरे रे, अविगत खेल अनंत ।। मनो॥ ज्ञानीथी कांइ बानी नही रे, अनंतिमा नहितवंत ॥ मनो० ॥ ॥ जाणपणुं तो जाणुं खलं रे, अहो मरुदेवाजात ॥ मनो० ॥ दीजें समकित वा सना रे, शो वातें एक वात ॥ मनो॥४॥ ऊर्तन नेट सुलन थइ रे, नमन नमत संसार ॥ मनो० ॥ मोहन कहे कवि रूपनो रे, जिनतूं प्राण आधा र ॥ मनो० ॥ ५॥ इति ॥ ॥ अथ पंचासराजीनुं स्तवन ॥. ॥ बांजी बांजी बांजी बंदा बांजी, मेंतो खासी दाढीवाला ॥ बंदा० ॥ मेंतो अनुजवरस मतवाला ॥ बंदा० ॥ ए आंकणी ॥ चंइकिरणसम तुम गुण स्तवना, गंगा रंग तरंगा॥अम मन बाल मराल तिहां जीले, नलिनी नक्ति प्रसंगा॥बंदा॥१॥ जागी शुद्ध दिशा नयो रागी, नागी नवनय डेड ॥ लागी लगन मगन नयो तोरां, नारखी कुगति नखेड ॥बंदा॥२॥ झान अनंतुं शक्ति अनंती, लीला सहेज अनंती ॥ देजो मुझने एहवा तुमनें, राख्या हृदय एकंती॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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