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________________ ( २०४ ) D साहेबा ए श्या सूरिजन ढंग || मीठा ॥ ४ ॥ या० ॥ निसुया कहीयें प्रसंगमें हो ॥ साहेबा तुम सरिखा निसनेह ॥ मीठा ॥ या० ॥ एम पशुखाने कारणें हो ॥ सा ear को गयो परिहरि गेह|| मीगणाणाया ॥ वीसरी गया तुमने खरा हो । साहेबा पूरव विविध विनो ढ़ || मीठा० ॥ ० ॥ श्रावो प्रीतम पातला हो ॥ साहेबा कहुं हुं बिवी गोद || मीठा ॥ ६ ॥ या० ॥ नेम पहेलां राजीमती हो ॥ साहेबा पोहोती सुगति डवार || मीठा० ॥ या० ॥ मोहन कदे कवि रुपना हो | साहेबा शिवादेवी मात मलार ॥ मी० ॥ ७ ॥ ० ॥ अथ ख्याल ॥ ॥समज जा गुमानी हो दिलजानी ॥ हांरे तुं तो सं व जिनने जज ले, हांरे तुं तो क्रोध कषायनें तज लें ॥ सम॥१॥ हारे तुंतो फरि पदवी नवि पावे, हांरे तुक मूरख कुन समजावे ॥ सम० ॥ २ ॥ हांरे - मोहननो माणक बोले, नही कोई जैनधरमने तोलें ॥ स०॥३॥ | अथ ख्याल ॥ ॥ पास जिनंदा माता वामाजीके नंदा रे, तुम पर वारी जानं खोल खोल रे ।। हांरे दरवाजे टेडे खोल खोल रे, हम दरसन खाये तोल तोल रे ॥ दर० ॥ ॥ १ ॥ पूजा करूंगी मेंतो धूप धरूंगी रे, फूल चडा नंगी बहु मोल मोल रे || दर० ॥ २ ॥ तें मेरा ठा कर में तेरा चाकर, एकवार मोतुं बोल बोल रे ॥ दर०॥३॥ सुरतमंकण सुंदर मूरत, मुखडुं ते काकम
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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