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________________ (१७) नाव ॥ मो० ॥ ३ ॥ शां० ॥ बत्रत्रय शिर शोनतां रे जोजो, महिमानो अवस ।। मो॥ अजूयाल्युं ती रथ आपणुं रे जोजो, विश्वसेननृपनो वंश ॥ मो० ॥ ॥४॥ शां० ॥ अकलकला जिनजी तणी रे जोजो, मनोहररूप प्रमीत ॥ मो० ॥ शांतलपुरवर शोनतुं रे जोजो, जगवित्तवत्सल जगवंत ॥मो॥॥ शां॥ केवलनाण दीवाकर रे जोजो, समकित गुणनंमार ॥ मो॥ पारेवु ते नगारीयुं रे जोजो, एम अनेक उप गार ॥ मो० ॥ ६ ॥ शां० ॥ हूं बलिहारी ताहरी रे जोजो, जिन तुमें देवाधिदेव ॥ मो० ॥ मोहन कहे कवि रूपलो रे जोजो, नवोजव देजो सेव ॥ मो० ॥ ॥ ७ ॥ शां० ॥ इति शांति जिन स्तवनं ॥ ॥अथ श्री शांतिनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ राग सारंग ॥ शांतिजिणंद महाराज ॥ जगत गुरु शांविजिशंद महाराज ॥ अचिरानंदन नवि मन रंजन, गुणनिधि गरीब निवाज ॥ ज० ॥ ॥ गर्न थकी जिरो ईति निवारी, हर्षित सुरनर कोडी ॥ ज नम थये चोश इंशदिक, पद प्रणमे कर जोडी ॥ ज० ॥ २ ॥ मृगतंडन नविकतुषगंजन, कंचन वान शरीर ॥ पंचमनाणी पंचम चकी, सोलशमो जिन धीर ॥ ज० ॥ ३ ॥ रत्नजडित नृषण अति सुंदर, प्रांगी अंग नदार ॥ अति उबरंग नगतिनौतन गति, नपशमरस दातार ॥ ज० ॥ ४ ॥ करुणा निधि जग वान कृपाकर, अनुजव नदित आवास ॥ रूपविबु
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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