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________________ ( १८८ ) डे पण हुं केम, बोडीश तुऊ नणी ॥ ज० ॥ नो तर कोइ प्रीति, प्रावी तुऊथी बनी ॥ ल॥४॥ र श्री शाने समकित देने नोलव्यो ॥ ०॥ हवे किम जानं खोटे, दिलासे उलव्यो || ल० ॥ जाली खा सो दास, विमासो बो किस्युं ॥ ज० ॥ में पण खिजमतमांहि, के खोटा किम यशुं ॥ ल० ॥ ५ ॥ बीजी खोटी वातें, में राधुं नही ॥ ल० ॥ में तुम आगल माहरा, मनवाली कही ॥ ल० ॥ राखो पूरण प्रीति, विमासो शुं नमें ॥ ल॥ अवसर नही एकांत. विनवीएं वे में || ल० ॥ ६ ॥ अंतरजामी स्वामी, अचिरानंदना || ल० ॥ शांतिकरण श्रीशांतिजी, मा नजो वंदना || ल० ॥ तु स्तवनाथी तन मन, श्रा द उपन्यो || ल ॥ कहे मोहनसनरंग, सुपंमितरूप नो ॥ ल० ॥ ७ ॥ इति शांति जिनस्तवनं ॥ " ॥ अथ श्री शांतिनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ नंदसनूणा नंदनारे लो ॥ ए देशी ॥ ॥ शांति जिणंद सोहामणा रे जोजो, शोजमा श्री जिनराय ॥ मोरा साहिबा रे || ठकुराइ त्रिलोकनी रे जोजो, सेवे सुरनर पाय ॥ १ ॥ मो० ॥ शां० ॥ मुख शारदको चंदलो रे जोजो, हसत ललित निश दीस || मो० ॥ खडी अमीय कचोलडी रे जोजो, पूरवो सकल जगीश ॥ मो० ॥ २ ॥ शां० ॥ श्रांगी अनुपम हेमनी रे जोजो, ऊगमग विविध जडाव ॥ मो० ॥ देखी मूरति सुंदरु रे जोजो, नजे अनिमिषता
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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