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________________ (१०) धनो मोहन पनणे, दीजें ज्ञान विलास ॥ ज० ॥ ५॥ ॥ अथ श्री कुंथुनाथ जिन स्तवनं ॥ ॥ चंदनरी कटकी नली ॥ ए देशी ॥ ॥ कुंथुजिणंद. करुणा करो, जाणी पोतानो मास ॥साहिबा मोरा॥ शुं जाणीअलगा रहा, जाण्यं को आवशे पास ॥सा॥१॥ अजब रंगीला प्यार, अ कल अलद न्यारा, परम ससनेही माह री विनती ॥ ए अांकणी ॥ अंतरजामी वाहाला, जोवो मीट मिना य॥सा॥ खिण महसो खणमां हमो, श्म प्रीत नि वाहो किम थाय ।। सा० ॥ २ ॥ प० ॥ रूपी दुवो तो पालव ग्रहूं, अरूपीने शं कहेवाय ॥ सा॥ कान मांच्या विना वारता, कहोने जी केम बकाय ॥सा॥ ॥३॥ प० ॥ देव घणा सुनीयामां अडे, पण दिल मेलो नवि थाय ॥ सा० ॥ जिण गामें जाएं नही, ते वाट कहो झुं पूबाय ॥ सा ॥ ४ ॥ १० ॥ मुफ मन अंतर मुहूर्तनो, में ग्रह्यो चपलता दाव ॥सा॥ प्रीतिसमे तो जुन कहो, ए शो स्वामी स्वजाव ॥ सा० ॥ ५॥ प० ॥ अंतरसोमलीयां प., नवि म लीयें प्रनु मूल ॥ सा ॥ कुमया किम करवी घटे, जे थयो निज अनुकूल ॥ सा ॥ ६ ॥१०॥ जागी हवे अनुनवदिशा, लागी प्रजुगुं प्रीति ॥ सा० ॥ रूप विजय कविरायनो, कहे मोहन रस रीति ॥ सा ॥ ॥ ७ ॥ प० ॥ इति श्री कुंथुजिन स्तवनं ।
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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