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________________ (१३) समय बदलाये, म किम प्रीति निवाहो थाये ॥४॥ ३० ॥ ते माटे तूं साहिब माहारो, ढुं बु सेवक नव जव ताहारो॥ एह संबंधमां महोजो खामी,वाचक मान कहे शिर नामी ॥ ५ ॥ ऋषन ॥ इति॥ १ ॥ ॥ अथ श्रीअजित जिन स्तवनं ॥ ॥ आघा आम पधार प्रज्य० ॥ ए देशी॥अजित जिणेसर चरणनी सेवा. हेवायें दुं दलियो ॥ कहि एं अणचाख्यो पण अनुनव, रसनो टाणो मलियो ॥ १ ॥ प्रनुज। महिर करीने आज, काज़ हमारां सारो ॥ मुकाव्यो पण ढुं नवि मूकुं, चूकुं.ए नवि टाणो॥नक्ति नाव कम्यो जे अंतर,ते किम रहे शरमा गो॥ २ ॥ प्र० ॥ लोचन शांति सुधारस सुनंगा, मु ख मटकालुं प्रसन्न ॥ योगमुनो लटको चटको, अतिशयनो अति धन्न ॥३॥ प्र० ॥ पिंम पदस्थ रू पस्थें लीनो, चरण कमल तुऊयहीयां ॥ जमर परें रसस्वाद चखावो, विरसो कां करो महीयां ॥४॥प्र० ॥ बाल कालमां वार अनंती, सामग्रीयें नवि जा ग्यो॥ यौवनकालें ते रस चाखण, तुं समरथ प्रनु मा ग्यो ॥५॥०॥ तूं अनुनव रस देवा समरथ, हूं पण अरथी तेहनो।चित्त वित्तने पात्र संबधे, अजर रह्यो हवे केहनो ॥ ६ ॥ ॥प्रनुनी महेरें ते रस चा ख्यो, अंतरंग सुख पाम्यो ॥ मानविजय वाचक श्म जपे, दू मुफ मन काम्यो ॥ ७ ॥ प्र० ॥ इति ॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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