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________________ ( १२५) धंधो यादरुं, निशि दिन तोरा गुण गानं रे ॥ गि० ॥ ॥ २ ॥ जीव्या जे गंगाजलें, ते बिल्वर जल नवि पेसे रे ॥ जे मालती फूलें मोहीया, ते बावल ज‍ नवि बेसे रे || गि० ॥ ३ ॥ एम में तुम गुण गो वसुं, रंगें राच्या ने वली माच्या रे ॥ ते केम परसुर आदरूं, जे परनारी वश राच्या रे ॥ गि० ॥ ४ ॥ तुं गति तुं मति यारो, तुं यानंबन मुऊ प्यारो रे ॥ वाचक यश कहे माहरे, तुं जीवन जीव आधारो रे ॥ गि०॥ ॥ ५ ॥ इति ॥ उपाध्याय श्री मद्यशोविजयजी कृत चोवीश जिन स्तवनं संपूर्णम् ॥ ॥ अथ उपाध्याय श्री मानविजयजी कृत ॥ ॥ चतुर्विंशति जिन स्तवनानि ॥ ॥ तत्र ॥ || प्रथम श्रीकृषन देव जिन स्तवनं ॥ ॥ राग प्रजाती ॥ रूपन जिांदा कषन जिणंदा, तुम दरिस दुवे परमाणंदा ॥ यह निशि चानं तुम दीदा रा, महिर करीने करजो प्यारा ॥ १ ॥ ० ॥ आप रानी पुंठे जे वलगा, किम सरे तेहने करतां लगा ॥ अलगा कीधा पण रहे वलगा, मोर पीठ परें न हुए उनगा ॥ २ ॥ ० ॥ तुम्ह पण लगे थये किम सरशे, क्ति नलिकर्षी लेशे ॥ गगनें उसे दूर पड़ा, दोर बलें हाथे रहे थाइ ॥ ३ ॥ ०॥ मुऊ मनडुं बेच पल स्वनावें, तोहे अंतर मुहूर्त्त प्रस्तावें ॥ तूं तो समय
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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