SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 178
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (११२) कंताकत सुहामणो जी ॥ १ ॥ पुरकर पश्चिम, विजय ते वप्र सुब-६ ॥ याज हो नगरी रे विजयायें विहरे गुणनिलो जी ॥ २ ॥ माहान जिनराय, गय लंबन जस पाय | आज हो सोहे रे मोहे मन लट काले लोयणें जी ॥ ३ ॥ तेनुं मुफ प्रति प्रेम, पर सुर नमवा नेम || आज हो रंजे रे डख जे प्रभु मुऊ ते गुणें जी ॥ ४ ॥ धर्मजोबन नवरंग, समकित पाम्यो चंग ॥ श्राज हो लाखिणी लाडी हवे मुक्तिने मेलशे जी ॥ ५ ॥ चरण धर्म अवदात. ते कन्यानो तात ॥ श्राज हो माहारा रे प्रभुजीने ते बे वश सदा जी ॥६॥ श्रीनय विजय सुशिप, जस कहे सुशो जगदी श। श्राज हो ताहरो रे हुं सेवक देव करो दयाजी ॥ ७ ॥ ॥ अथ श्री देवजसाजिन स्तवनं ॥ ॥ कुमरी रोवे कंद करे ॥ ए देशी ॥ देवयशा जिन राजीयो ॥ मनमोहन मेरे || पुरकर दीप मकार ॥०॥ परिध सोहामणो ॥ म० ॥ वब विजय संचार ॥ म० ॥ १ ॥ नय । सुसीमा विचरता ॥ म० ॥ सर्वभूति कुलचंद ॥ म० ॥ शशि लंबन पदमा वती ॥ ० ॥ वल्लन गंगानंद ॥ म० ॥ २ ॥ कटि लीलायें केशरी ॥ म० ॥ ते हास्यो गयो रान ॥ म०॥ हास्यो हिमकर तु मुखें ॥ म० ॥ हजिय वजे नहिं वान ॥ ० ॥ ३ ॥ तुऊ लोचनथी लाजिया ॥ म० ॥ कमल गयां जल मांहि ॥ म० ॥ श्रहिपति पातालें गयो । म० ॥ जींत्यो ललित तुऊ बांहि ॥ म० ॥ ४ ॥
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy