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________________ ( १११ ) कीनो तुक गुण प्रेम पहूर रे ॥ सा० ॥ ४ ॥ तुं दोलत दाता तुंहिज त्राता महाराज रे ॥ सा० ॥ न व सायर तारो सारो वंबित काज रे ॥ सा० ॥ ख चरण पूरण कीजें सयल जगीश रे ॥ सा० ॥ अरदास प्रकाशे श्रीनयविजय सुशिष्य रे ॥ सा० ॥ ५ ॥ ॥ अथ श्री वीरसेनजिन स्तवनं ॥ ॥ ऋपननो वंश रयणायरु ॥ ए देशी ॥ पश्चिम रथ पुरकर वरें, विजय पुरकल वइ दीपें रे ॥ नयरी पुंमरीगिणी विहरता, प्रभु तेजें रवि जीपे रे ॥ श्री वीरसेन सुरु ॥ ए यांकणी ॥ १ ॥ नानुसेन नू मिपालनो, अंगज गजगति वंदो रे || राजसेना मन वालहो, वृपन लंबन जिन चंदो रे ॥ श्री० ॥ २ ॥ म शिवि जे लिखुं तु गुणें, अक्षर प्रेमना चित्तें रे ॥ धोइएं तिम तिम ऊघडे, जगति जलें तेह नित्त रे ॥ श्री० ॥ -३ ॥ चक्रवर्ति मनें सुख धरे, कूपन कूटें ल खि नामो रे || अधिकारें तुम गुण तेहथी, प्रगट हु या गम गमो रे ॥ श्री० ॥ ४ ॥ निज गुण गुंथित तें करी, कीर्ति मोतिनी माला रे ॥ ते मुक्त कंठें आरोप तां, दीसे जाक ऊमाला रे ॥ श्री० ॥ ५ ॥ प्रगट हुए जिम जगतमां, शोना सेवक केरी रे ॥ वाचक जस कहे तिम करो, साहिब प्रीति घोरी रे ॥ श्री ॥ ६ ॥ इति ॥ अथ श्री महान जिन स्तवनं ॥ ॥ लाबलदे मात मल्हार ॥ ए देशी ॥ देवरायनो नंद, माता उमा मनचंद | आज हो राणी रे सूरी
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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