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________________ जय सोर ॥ स्वा० ॥ अंतरंग मिलवेजी उजाय, शोक विरह जिम दूर पलाय ॥ स्वा० ॥ ४ ॥ तुं माता तुं बांधव मुज, तुंही पिता तुफरां मुफ गुफ ॥ स्वा० ॥ श्रीनय विजय विबुधनो शिष्य, वाचक जस कहे पूरो जगीश ॥ स्वा० ॥ ५ ॥ ॥ अथ श्रीनमि प्रनुजिन स्तवनं ॥ ॥ थारे माथे पंचरंगी पाग, सोनारो बो गलो मारु जी ॥ ए देशी॥ ॥ पुरकरवर पूरव अरथ दिवाजे राजे रे ॥ साहि बजी॥ नलिनावती विजयें नयरी आयो या बाजे रे॥ सा ॥ प्रनु वीर नरेंसर वंश दिणेसर ध्याएं रे ॥ सा॥ सेना सुत साचो गुणगुं जाचो गाइएं रे ॥ सा ॥ १ ॥ मोहनी मन वन दर्शन उर्जन जास रे ॥ सा० ॥ रवि चरण नपासी किरण विला सी खास रे ॥सा ॥ नविजनमन रंजन नव नंज न जगवंत रे ॥ सा० ॥ नेमिप्रनु वंदं पाप निकंदूं तंत रे ॥ सा० ॥ २ ॥ घर सुरतरु फलियो सुरमणि मलियो हाथ रे ॥ सा ॥ करि करुणा पूरी अघ चूरी जग नाथ रे ॥ सा ॥ अमिएं घन वृता वली तूता सवि देव रे ॥ सा० ॥ शिवगामी पामी जो में तुफ पय सेव रे ॥ सा० ॥३॥ गंगाजलें नाह्यो ढुं नमाह्यो आज रे ॥सा० ॥ गुरु संगति सारी मुफ अवधारी लाज रे ॥ सा ॥ मुह माग्या जाग्या पूर्व पुण्य अंकूर रे ॥ सा० ॥ मन लीनो
SR No.010285
Book TitleJain Prabodh Pustak 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1889
Total Pages827
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size62 MB
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