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________________ (३५ जैन पाठावली ) जाय तो ज्ञान प्राप्त नही होता । उदाहरणार्थं सुबह में अभ्यास करने के लिए बैठने वाला विद्यार्थी, दोपहर मे शायद ही कर सके । इसी कारण ज्ञानी पुरुष समय देखकर काम करने के लिए कहते है । ऐसा न करने से ज्ञान में दोप लगता है । सातवाँ पाठ ज्ञान 1 ' दिवस सम्बन्धी ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप के विषय में जो अतिचार लगे हो, उनकी आलोचना करता हूँ । प्रकार कहकर नीचे लिखा पाठ बोलना चाहिए इस मूलपाठ आगमे तिविहे पन्नत्ते, त जहा : सुत्तागमे, अत्थागमे, तदुभयागमे, एअस्त सिरिनाणस्स जे अइयारा लग्गा ते आलोएमि । (१) जं वाइद्धं ( २ ) वच्च सेलियं, (३) होणरखरं (४) अच्चरखर ( ५ ) पयहीणं (६) विणयहीण ( ७ ) जोगहीणं (८) घोसहीणं ( ९ ) सुट्ठदिनं (१०) दुट्ठपडिच्छियं ( ११ ) अकाले कओ सज्झाओ (१२) काले न कओ सज्झाओ (१३) असज्झाइए सज्झाय (१४) सज्झाइए न सज्झायं तस्स मिच्छा मि टुक्कडं । 1
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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