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________________ २६) (तृतीय भाग अर्थ आगमे तिविहे पन्नत्ते- आगम तीन प्रकार का कहा गया है तं जहा वह इस प्रकार है सुत्तागमे सूत्र शब्द रूप आगम अत्यागमे अर्थ रूप आगम तदुभयागमे- दोनो प्रकार का ( सूत्र और अर्थ रूप) आगम एअस्स सिरिनाणस्स- इस श्री ज्ञान के विषय में जे अइयारा लग्गा- - जो अतिचार लगे हो ते आलोएमि- उनकी आलोचना करत जं वाइद्ध (१) अगर सूत्र आगे पीछे बोला हो वच्चामेलिय- (२) एक पद को दूसरे पद मे मिला कर पढा हो । हीणक्खरं- (३) अक्षर कम बोले हो अच्चरखरं (४) ज्यादा अक्षर वोले हो पयहीणं- (५) पद कम बोले हो--कोई पद छोड दिया हो विणयहीणं- (६) विनय विना सूत्र बोला हो जोगहीणं (७) मन, वचन, काय की स्थिरता न रखकर सूत्र बोला हो घोसहीणं (८)बिना गुद्ध उच्चारण बोला हो सुदिनं (९)अविनीत को ज्ञान दिया हो
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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