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________________ १२८) ( जैन पाठावली सेठजी लहार को बुलाकर लाये। पर अब लुहार की क्या आवश्यकता थी ? . चन्दना को पहले जैसी देखकर सेठजी बहुत प्रसन्न हुए। सारे नगर मे चर्चा फैल गई। मूला सेठानी भी आई । वह खराव वर्ताव करने के लिए पछताने लगी। उसने चन्दनवाला से माफी मांगी। मगर चन्दनवाला ने कहा-' माँ | तुमने ऐसा न किया होता तो भगवान् को आहार-दान देने का सौभाग्य कैसे मिलता ? अहा कितनी क्षमा ।' चन्दनबाला को देखने के लिए नगर के लोगो का मेला लग गया। कौशाम्बी के राजा-रानी भी आये । रानी ने पहचान निकाली । पहले की वसुमती और आज की चन्दनबाला उसकी बहिनोती होती थी। कौशाम्बी की रानी चन्दनबाला की मौसी लगती थी। मौसी चन्दनवाला को अपने महल में ले गई । अव चन्दनवाला को रहने के लिए मजे का महल मिल गया । घूमने के लिए सुन्दर बगीचा था और खाने के लिए भाति-भाति के भोजन थे । दास-दासियाँ सेवा के लिए हाजिर । पर चन्दन-- बाला धनावाह सेठ का उपकार नही भूली और उसका ध्यान भगवान् से हटता नही । इसे कहते है आदर्श कन्या । 'महाप्रभु महावीर की सेवा मे रहने को मिल जाय तो । कितना सौभाग्य ।' हमेशा उसकी भावना ऐसी ही बनी रहती है। वह प्रभु महावीर से प्रार्थना भी करती है। मगर भगवान्
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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