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________________ . तृतीय भाग) (१२७ हो, उसका मस्तक मुंडा हो, पर में बेडी पहने हो, भूखी हो - और सूप में उडद के बाकले पडे हो, वह रोती हो, उसी के हाथ से मै भिक्षा लूंगा।' कितना कठोर निश्चय है | बहुत दिनो से यह निश्चय पूरा नहीं हो रहा है और सत उपवासी हैं । कौशाम्बी के राजा-रानी और नगर-निवासी इसी चिन्ता मे हैं कि किसी तरह इस सत-महात्मा का पारणा हो जाय । यही सत आज चन्दनबाला के पास पधारे। चन्दनवाला के हर्प का पार नही रहा । हैं तो बाकले मगर आज आहारदान देने का लाभ मिलेगा। चन्दनवाला ऐसा सोच ही रही थी कि सत देखकर लौट पडे। उनके निश्चय के अनुसार और तो सभी था, सिर्फ आँख में आँसू नही थे। संत को लौटते देख चन्दनबाला ने सोचा--मै कैसी अभागिनी हूँ कि आगन मे आये सत भिक्षा बिना लिए ही लौट ___ गये । और चन्दनबाला रो पड़ी। रोने की आवाज सुनकर सत ने मंह फेर कर देखा। चन्दनबाला की आँखो मे उन्हे आँसू दिखाई दिये। अब उनका __ निश्चय पूरा हो गया । सत वापिस लौट आये। चन्दनबाला ने भक्ति के साथ उडद के बाकलो का दान दिया । - भिक्षा लेनेवाले सत कौन थे? दूसरे नही, स्वय भगवान् - महावीर थे। उसी समय देवो ने दिव्य फूलो आदि की वर्षा की। बेडियाँ टूट गई । मस्तक पर जैसी की तैसी चोटी हो गई।,
SR No.010283
Book TitleJain Pathavali Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTrilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
PublisherTilokratna Sthanakwasi Jain Dharmik Pariksha Board Ahmednagar
Publication Year1964
Total Pages235
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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