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________________ प्रमाण-योजन-चार प्रमाण गम्यूति के बराबर का माप । प्रमाणांगुल-पाँच सौ उत्सेधांगुल का प्रमाण । प्रमाता-प्रमेति क्रिया का कर्ता । प्रमाद-सदाचार एवं सदविचार के प्रति अनुत्सुकता; कर्तव्य में अप्रवृत्ति । प्रमादधर्या-बिना किसी उद्देश्य के की जाने वाली सावद्य क्रिया। प्रमार्जन-जीवो की रक्षा के लिए रजोहरण, मयूरपिच्छी या किसी कोमल उपकरण से यतनापूर्वक झाडना/पोछना । प्रमेय-प्रमाण का विषयभूत पदार्थ । प्रमोद-गुणियो के गुणो के चिन्तन से होने वाली आनन्द अनुभूति। प्रवचनमाता-माता के समान रत्नत्रय की रक्षा करने वाली . समिति एवं गुठि। प्रवतिनी-अधिष्ठात्री साध्वी ; साध्वी-प्रमुखा । प्रविचार-मैथुन-सेवन । प्रव्रज्या-दीक्षा ; संयम स्वीकृति । प्रशम-राग, द्वेष आदि दोषो की तीव्रता का अभाव । [ ६ ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
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