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________________ प्रशस्त-राग-देव, गुरु एवं धर्म के प्रति निष्ठा । प्रशस्त विहायोगति-उत्तम गति का कारण । प्राकृत-स्वभाव-सिद्ध , प्रकृति से उत्पन्न ; भाषा, संस्कृत का अपरिष्कृत रूप। प्राज्ञश्रमण-असाधारण मेधा सम्पन्न मुनि । प्राण-जीवन के आधारभूत तत्त्व ; मन-वचन-काय रूप तीन बल, पाँच इन्द्रियाँ और श्वासोच्छवास-ये दस प्राण हैं। प्राण-प्रतिष्ठा-मूर्तिमान के अनुरूप करना ; जीवन्त करने की प्रक्रिया। प्राणायाम-श्वास द्वारा शरीर पर शासन , प्राण-शक्ति का नियन्त्रण ; श्वास और प्रश्वास का निरोध । प्राणातिपात-हिंसा ; प्राणियो का प्राणो से वियोग । प्राणातिपात-विरमण-अहिंसा ; जीवों के प्राण-घात का त्याग ; प्रथम मूल गुण । प्राप्ति-लाभ , किसी भी दूरस्थ चीज को स्पर्शित करने की ऋद्धि विशेष । प्रायश्चित्त-आत्म-शुद्धि के लिए कृत दोषो की आलोचना तप का एक अंग। [ १० ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
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