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________________ उपपाद-१ अन्य गति में जन्म, २ देव और नारकीय का जन्म-स्थान। उपभोग-परिभोग-व्रत-पुनः पुनः भोग में आने वाली पाप बहुल वस्तुओ का सर्वथा त्याग और अल्प पाप वाली वस्तुओ की परिमितता।। उपमान-किसी प्रसिद्ध उपमा विशेष से साध्य की सिद्धि । उपयोग-चेतन्य प्रवृत्ति , आत्मा का ज्ञान दर्शन युक्त परिणाम ; विषय को ग्रहण करने का व्यापार । उपयोग-शुद्धि-जीवो की रक्षा में चित्त की जागरुकता । उपयोगेन्द्रिय-विषयभूत पदार्थ को जानने के लिए होने वाला ज्ञान-व्यापार । उपवास-आत्म-मामीप्य, कषाय-निरोध एव ग्वाद्य-पेय पदार्थों ____ का त्याग । उपवृहण-सम्यचिन्तन पूर्वक धर्म की अभिवृद्धि । उपशम-१ कारणवश कर्म फल देने की शक्ति का प्रगट न होना, २. इन्द्रिय-निग्रह, ३. क्षमाभाव । उपशमक-कषायो का उपशमन करने वाला माधक । उपशमक श्रेणी-चारित्र मोहनीय का उपशमन करते हुए आरोहण करना। [ २६ ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
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