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________________ उपशम-सम्यक्त्व-दर्शन-मोहनीय के उपशम से उत्पन्न होने वाली तत्त्व-श्रद्धा। उपशान्त-कषाय-ग्यारहवा गुण-स्थान, मोहकर्म एवं कपायो का पूर्ण उपशमन । उपशान्त-मोह-उपशान्त-कषाय का दूसरा नाम । उपसम्पदा-१. गुरु के प्रति आत्म-निष्ठा, २. ज्ञान एव चारित्र की विशेष उपलब्धि के लिए अन्य परम्परा का स्वीकृतिकरण। उपसर्ग-उपद्रव ; पूर्व वैरवशाव किये जाने वाले व्यवधान । उपस्थापन-निर्विकल्प स्थिति मे प्रत्यावर्तन । उपादान कार्य में अपनी विशेषताओं का समर्पण ; कारण । उपाधि-वस्तु का गुण। उपाध्याय-चतुर्थ परमेष्ठी, आगमविद मुनि, स्वयं ज्ञान-ध्यान में रत एवं संघ-सदस्यो का आगम-प्रशिक्षक । उपासक-उत्कृष्ट श्रावक । उष्ण परीपह-समत्व योग की अस्मिता की रक्षा के लिए आतापना सहन करना। [ २७ ]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
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