SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 17
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुमेय-प्रमेय अनुमान से जानने योग्य वस्तु । अनुयोग-आगम के शब्द और अर्थ का सम्यक् सयोजन । अनुवीचि-भाषण-विवेकपूर्वक मधुर सम्भाषण । अनुवृत्ति-गुण-वैशिष्ट्य की प्रतीति । अनुश्रेणि-आकाश-प्रदेशों की अनुक्रम से अवस्थित पंक्ति । अनृत-सत्य के प्रति बगावत । अनेकान्त-एक वस्तु के बहुआयामी व्यक्तित्व का प्रकाशक । अनेकान्तिक हेत्वाभास-पक्ष और सपक्ष के समान विपक्ष में भी रहने वाला हेतु । अन्तरात्मा-बाह्य विषयो से विमुख अन्तर-प्रविष्ट आत्मा। अन्तराय-दान, लाभ आदि में वाधा उपस्थित करने वाला कर्म । अन्तर्महर्त-अड़तालीस मिनिट की अवधि ; आठ समय से अधिक और दो घडी के भीतर का काल । अन्तर्व्याप्ति-पक्ष में ही साध्य की मत्ता। अन्यत्व-एक द्रव्य से दूसरे द्रव्य में भिन्नत्व । अन्यत्व-अनुप्रेक्षा-अपने स्वरूप को शरीर से भिन्न देखने की भावना। अन्यथानुपपत्ति-साध्य के अभाव में हेतु का घटित न होना। [६]
SR No.010280
Book TitleJain Paribhashika Shabdakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy