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________________ mmmmmmmmmmmmmmmmwwwsememememommmmmmmmmsentence १८८ ) जैन युग-निर्माता। बीबन उस भादर्शकी ओर अग्रसर हो रहा है, ऐसी स्थितिमें यह कभी भी नहीं हो सकता कि मैं अपने हृदय-सर्वस्वके लिए जो अक्षय प्रेमको स्थापित किए हुए हूं उसे विसर्जन कर दें ! जो हृदय नेमिकुमारजीके निर्मल प्रेमसे ओतप्रोत होरहा है उसमें अन्य व्यक्तिके लिए कहीं भी स्थान नहीं हो सकता। जिन महिलाओंमें आर्यत्व और धर्मत्वका कुछ गौरव नहीं है संभव है वे ऐसा कुछ कर सकें। जिनका लक्ष्य प्राचीन भादर्शकी ओर नहीं है और जो इन्द्रिय बासना तृप्त तक ही जीवनका रद्देश्य समझती हैं, जो सांसारिक प्रलोभनोंके साम्हने अपने मापको स्थिर नहीं रख सकतीं उनके साम्हने इस मादर्शका भले ही कुछ महत्व व हो लेकिन मेरे साम्हने तो उसका महत्व स्थिर है। मैं यह स्पष्ट कह चुकी हूं, मेग यह निश्रित मत है कि इस जीवनमें श्री नेमिकुमारजीको ही मैंने अपना पति स्वीकार किया है वही मेरे सर्वस्व हैं. वही मेरे ईश्वर हैं उनके अतिरिक्त किसी व्यक्तिसे मेरे संबन्धकी बात जोड़ना मेरे पातिव्रत धर्मको कलंकित करना है। अबतक मैं बहुत सुन चुकी अब भविष्यमें ऐसे शब्दोंको मैं एक मणके लिए नहीं सुन सकूँगी । मैं सूचित कर देना चाहती कि कोई भी अब मेरे लिए ऐसे शब्दोंका प्रयोग न करें। धन्य! कुमारी सजीमती! तेरी मलौकिक दृढ़ताको धन्य है ! तेस मात्मत्याग महान् है, तेरा मदर्श भारतीय महिलाओं में अनंतकाल तक बागतिकी ज्योति नगायेगा। वर्तमान कुमारियोंको महामनी शनीमनी के इस निर्भया बाबीके
SR No.010278
Book TitleJain Yuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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