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________________ दयासागर नेमिनाय। शिक्षा लेना चाहिए और उपका अनुकरण करना चाहिए। अपने धार्मिक विचारों और भात्म दृढ़ताको उन्हें अपने माता पिताके साम्हने स्पष्ट रूपसे रख देना चाहिये और अपनी मर्यादाकी रक्षा करना चाहिए । यदि वह उनकी इच्छाके विरुद्ध भयोग्य अथवा मधार्मिक वरसे उनका सम्बन्ध स्थापित करना चाहते हैं तो उन्हें इसका स्पष्ट विरोष करना चाहिए । यह याद रखना चाहिए कि अपने ऊपर होनेवाले मनर्थ और अत्याचारके समय मौन रखना उसे उत्तेजना देना है, इस समयकी उनकी लजा हृदय-दौत्यके मतिरिक्त कुछ नहीं है । यदि लज्जाके वश होकर राजीमती मौन रहकर अपने माता पिताकी आज्ञाको मान लेती तो मादर्श नष्ट होने के साथ २ उसका जीवन भी नष्ट हो नाता । अपने सच्चे हृदयकी भावाजको माता पिताके सामने रखना, उन्हें सत्कर्तव्यकी ओर झुकाना और अपने हृदयके निश्चल विचारों का परिचय देना महिमामयी भारतीय कन्याओंका कर्तव्य है । राजीमतीके रद निश्चयके भागे किस को कुछ भी कहनेका साहस नहीं हुमा और समी जन मौन रह गए। नेमिनाथजी रथ कोटाकर राज्य महलको चल दिए। वे वैराम्यके उन्नत शिखर पर चढ़ गए थे। विवाह के कंकणको मोह राजाके प्रबल साथीने और ममत्वका दृढ बंधन समझकर उसे तो उन्होंने तोड़ डाला, सभी वस्त्र उतारकर तपश्चरण करनेके लिए वे ससार वनकी ओर चल दिए । कामदेवका मदमर्दन करनेवाले उन योगी नेमिकुमारने कई वर्षों तक उस जंगलमें रहकर कठोर तपश्चर्या की । तपके बलसे म्होंने पूर्ण समाधिको धारण किया और भात्माकी दिव्य ज्योतिको देखा।
SR No.010278
Book TitleJain Yuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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