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________________ दानवीर श्रेयांसकुमार । KnowmarwArunatomayaPoonewwwwoRARAMMARom लिया । इन्हें भोजन चाहिए यह समय मोसनका ही है, फिर पवित्र पदार्थ भी होना चाहिये पवित्रत के साथ ऐसा भी हो जो इनके शरीरको माता भी दे सके वे सोच चुके थे । उनका हृदय इर्षसे भा गया हृदयही में बोले मेग सौभाग्य है। आज मैं इन तपम्वीको भोजन दंगा पवित्र भावनासे उनका मन भा गया । भक्तिके आवेशने उन्हें गद् गद् कर दिया, वे शीघ्र ही बालं-भगवन् ! विगजें, आहार पवित्र है ग्रहण करें। फिा अपने भाई सोम और गनी लक्ष्मीमती के साथ २ उन्होंने ताजे गन्ने के मका बहा दिया, अनुकूल समझकर महात्माने उसे ग्रहण किया। वे तुष्ट हुए. इसी समय महात्माके भोजन दानके प्रभावसे मारे नगर में जय जय शब्द गूंन उठा, देवता प्रसन्न हुए, और प्रकृतिने उनके कार्यको साहा, गगनसे पुरुष वृष्टि होने लगी, मलय-वायु वहने लगा और मानों के मन से फूल उठे । श्रेयाम और सोमपभने तपकी ऋषभदेवको भोजन दे अपनको कृतार्थ समझा भोजन ले तम्वी वनको चल दिए और आत्मध्यानमें तन्मय होगये । माजकी जनताकी दृष्टि में इस माहारदानका कोई महत्व न हो और इस घटनाकी और कुछ भी ध्यान न दिया जाए। भाजका - सुशिक्षित समाज और अपनी दिनाको सर्वश्रेष्ठ समझनेवाले लोग इसे एक साधारण घटना समझकर भले ही भुशादें, लेकिन उस समयको परिस्थितियों और लोक प्रणालियों का जिन्होंने अध्ययन किया है वे इस घटनाके महत्वको अवश्य मानेंगे।' ' श्रेयांस द्वारा दिए गए मोबन दानका यह अभूतपूर्व दृश्य
SR No.010278
Book TitleJain Yuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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