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________________ mmonweauwomeVARANAINAMunwmmmmunawwanmmmmmMANANAMRAwarenion.. ६४] जैन युग-निर्माता । हस्तिनापुरकी जनताने अपने जीवन में आज प्रथमवार ही देखा था। उन्होंने इसे बड़ा महत्वपूर्ण समझा, और समस्त जनताने एकत्रित होकर उनके इस दानकी प्रशंसा की। वे बोले-राजकुमार, हम लोग यह समझ ही सके ये कि इस समय हमें क्या करना चाहिए ? यदि भाज मापने उन महात्माको भोजन दान न दिया होता तो में भूखा ही लौटना होता और हम लोगों के लिए यह बड़े कलंककी बात होती । आजसे छ मास पहले अयोध्यासे उ भूस्खा ही लौटना पड़ा था, और छह मास कठिन मनाहारक प्रत फिसे लेना पड़ा था। हम लोग यह नहीं जानते थे कि उन्हें कौनसी वस्तु किम ताह देना चाहिर ? आपके बढ़ते हुए ज्ञानने यह सब कुछ समझा अत: आप हमारे धन्यवादके पात्र हैं। फिर हर्षप्ते फूली हुई हस्तिनापुरकी जनताने इस दिनको चिमणीय बनाने के लिए महोत्सव मनाया। इस महोत्सवमें चक्रवर्ती भातने उपस्थित होकर श्रेयांसकुमारको अभिनंदन पत्र प्रदान किया। उपस्थित जनताने दानके विशेष नियम और उपनियम जाननकी इच्छा प्रकट की। कुमार श्रेयांसने अपने बढ़े हुए ज्ञानके प्रभावसे ठानकी पद्धतियों का विशेष परिचय कराया। वे वोले-नागरिको! मागे चल कर साधु प्रथाकी बहुत वृद्धि होगी और तपस्वी लोग भोजनके लिए नगर में माया करेंगे इन तालियों को किसी ताहको इच्छा नहीं होगी ? यह धन, वैभव भगवा किसी वस्तुको नहीं चाहेंगे ये तो केवल माने शरीर मणके लिए मोबन चाहेंगे। इन्हें गदासे अपने वा बुलाकर श्रद्धा और मक्तिसे अनुकूल भोबन देना होगा। इन साधुओंको थरीम्से मोह नहीं होता, इन्हें तो केवल मात्मकल्याणकी धुन रहती है। लेकिन अपने
SR No.010278
Book TitleJain Yuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchandra Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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