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________________ मोह-न-जोदड़ो में दिगम्बर जैन योगी EVAR सील नं. ४३० प्रजापति वपनदेव को भागवन पुगण में बहुत ही दिव्य और भव्य महापुरुष के मध में ग्वीकार किया है। वर्णन की एक चरम मीमा भी होती है। ऋषभदेव की भागवत में वणन प्रगस्ति यहा प्रस्तृत है 'इति ह स्म मकल वेद-लोक-देव-बाह्मणगवां परमगुरोभगवत ऋषभाज्यस्य विशुद्धचरितमीहितं पुंसां समस्त दुरचरितामिहरणं परममहामंगलायनम्..।' -भागवन १६ (म प्रकार सम्पूर्ण यंत. लाय. देव. ब्राह्मण और गौओ के परमगुरु भगवान् ऋषभदेव का विशद्ध चरित्र कहा गया है जो कि मनुष्यों के ममम्त दृश्चारित्र का अभिहरण करने वाला तथा उत्कृष्ट महान मुमंगलों का स्थान है।) 'प्राहिम पथिवीनाथमारिमं निष्परिपहम् । आदिमं तीर्थनापं च षम स्वामिनं स्तुमः ।।' -हमचन्द्र. मकनाईनम्नत्र, १३ (पृथिवी के प्रथम म्यामी. प्रथम परिग्रहत्यागी और प्रथम तीथंकर श्री वृषभदेव म्वामी को हम स्तुति करने है।)
SR No.010276
Book TitleJain Shasan ka Dhvaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaykishan Prasad Khandelwal
PublisherVeer Nirvan Bharti Merath
Publication Year
Total Pages35
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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