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________________ ७०] जैन पूजांजलि मिथ्यातत्व जगत में भ्रमण कराता है | सम्यक्त्व मुक्ति से रमण कराता है || हुए तपस्यालीन ग्रात्मा का ही प्रतिपल करते ध्यान । शाश्वत निव स्वरूप आश्रय ले पाया तुमने केवल ज्ञान ॥ थे तिरानवे गणधर जिनमें प्रमुख दत्त स्वामी ऋषिवर । मुख्य श्राधिका वरुणा, श्रोता दानवीर्य आदिक सुरनर ॥ समवशरण में तुमने प्रभुवर वस्तु तत्त्व उपदेश दिया । उपादेय है एकश्रात्मा यह अनुपम संदेश दिया ॥ ज्ञाता दृष्टाबने जीव तो रागद्वेष मिट जाता है । जो निजात्मा में रहता है वही परम पद पाता है ॥ हो अयोग केवली आपने हे स्वामी पाया निर्वारण | अर्ध चंद्र सम सिद्ध शिला पर पहुँचे चंदा प्रभु भगवान ॥ श्रर्ध चंद्र शोभित चरणों में भ्रष्टम तीर्थङ्कर स्वामी । जन्म मरण का चक्र मिटाने प्राया हूं अन्तर्यामी ॥ ॐ ह्रीं श्रीं चंदप्रभ जिनेन्द्राय गर्भ जन्म तप ज्ञान मोक्ष पंच कल्याण प्राप्ताये पूर्णार्घ्यम निर्वपामीति स्वाहा । चंदा प्रभु के पद कमल भाव सहित उरधार । मन वच तन जो पूजते वे होते भव पार | * इत्याशीर्वादः ॐ ह्रीं श्री चंदप्रभ जिनेन्द्राय नमः ¤✡ जाप्य - श्री शीतलनाथ जिन पूजन शीलेश । महेश || जय प्रभु शीतजनाथ शील के सागर शील सिन्धु कर्म जाल के शीतल कर्ता केवल ज्ञानी महा कालिक ज्ञायक स्वभाव ध्रुव के आश्रय से हुए जिनेश । मुझको भी निज सम शीतल कर दो है विनय यही परमेश ॥
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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