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________________ जैन पूजांजलि [७१ आत्म ज्ञान वैभव यदि हो तो सदाचार शोभा पाता है । पंचपरावर्त्तन अभाव कर चेतन मुक्ति गीत गाता है । ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथ जिनेन्द्र अत्र अवतर अवतर संवौषट् । ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः।। ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथ जिनेन्द्र अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् । निर्मल उज्ज्वल जलधार चरणों में सोहे। यह जन्म रोग मिट जाय निज में मन मोहे ॥ हे शीतलनाथ जिनेश शीतलता धारी । हे शील सिन्धु शीलेश सब सङ्कट हारी ।। ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथ जिनेन्द्राय जन्म जरा मत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा । चन्दन सी सरस सुगन्ध मुझ में भी पाये । भव ताप दूर हो जाय शीतलता छाये ॥ ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथ जिनेन्द्राय संसारताप विनाशनाय चन्दम् नि । निज अक्षय पद का भान करने आया हूँ। हर्षित हो शुभ्र प्रखण्ड तन्दुल लाया हूँ॥हे शीतल. ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथ जिनेन्द्राय अक्षय पद प्राप्तये अक्षतम् नि । कन्दर्प काम के पुष्प अब मैं दूर करूं। पर परिणति का व्यापार प्रभु चकचूर करूं ॥ हे शीतल. ॐ ह्री श्रींशीतलनाथ जिनेन्द्राय कामबाण विध्वंसनाय पुप्पम् नि । चरु सेवन रुचि दुखकार भव पीड़ा दायक । है क्षुधा रहित निज रूप सुखमय शिवनायक ॥ हे शीतल. ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथ जिनेन्द्राय क्षुधा रोग विनाशनाय नैवेद्यम नि० । प्रज्ञान तिमिर घन घोर उर में पाया है। रवि सम्यक् ज्ञान प्रकाश मुझको भाया है । हे शीतल. ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथ जिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा।
SR No.010274
Book TitleJain Pujanjali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajmal Pavaiya Kavivar
PublisherDigambar Jain Mumukshu Mandal
Publication Year
Total Pages223
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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