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________________ ( 19 ) गम्य नही होते, इसका तात्पर्य है कि उसकी व्याप्ति नही हो सकती-अविनाभाव के नियम का निर्धारण नहीं हो सकता । जिसकी व्याप्ति नही हो सकती उसका अनुमान नही हो सकता । अत अभूत द्रव्य केवल परोपदेश (श्रुत जान) के द्वारा ही जाने जा सकते हैं । अतीन्द्रिय-द्रष्टा पुरुषो ने अमूर्त द्रव्यो का साक्षात् किया और उनका प्रतिपादन किया । उस प्रतिपादन के आधार हम जान सकते हैं कि अमूर्त द्रव्य हैं । मूर्त द्रव्यो को इन्द्रियो के द्वारा जान सकते हैं। उन्हे कुछेक पर्यायो द्वारा नहीं जान सकते हैं, सब पयायो द्वारा नही जान सकते । चक्षु के द्वारा वस्तु के रूप को जान सकते हैं किन्तु अन्य पर्यायो को नही जान सकते । परोपदेश (श्रुतज्ञान) शब्द के माध्यम से होता है । शब्द सख्येय हैं । पर्याय सख्येय, असख्येय और अनन्त हैं, इसलिए परोपदेश के द्वारा भी सर पर्याय नही जाने जा सकते। अवधि और मन पर्यव के द्वारा मूर्त द्रव्य ही जाने जा सकते है । केवलज्ञान से मूत और अमूत-दोनो साक्षात् होते है ।। केवलज्ञान के द्वारा शेय का साक्षात् होता है, इसलिए उसमे हेतु का कोई अवकाश नहीं होता । श्रुतज्ञान के द्वारा पदार्थ का साक्षात् ज्ञान नही होता इसलिए उसमे हेतु का अवकाश है । सिद्धान्त चक्रवर्ती नेमिचन्द्र ने श्रुतज्ञान के दो प्रकार बतलाए हैं शव्दज और लिगज । शब्द के सहारे होने वाला श्रुतज्ञान शब्दज होता है और लिग (हेतु) से होने वाला श्रुतज्ञान लिगज कहलाता है । एक अर्य के द्वारा दूसरे अर्थ का उपलभ होना श्रु तज्ञान है। जब हम धूम के द्वारा अग्नि का ज्ञान करते हैं तब धूम नामक अर्थ से अग्नि नामक अर्थ का बोध होता है । इस प्रकार श्रुतज्ञान मे हेतु की अस्वीकृति नही है । इसका तात्पर्य है कि प्रागमयुग मे भी हेतु मान्य रहा है । किन्तु श्रागमपुरुष की उपस्थिति मे उसकी उपयोगिता कम हो जाती है। जब तक 3 तत्वार्थवात्तिक, 1/26 श्रुतमपि शब्दारच सव सख्यया एव, द्रव्यपर्याया पुन संख्येयाऽसख्येयानन्तभेदा , न ते सर्व विशेषकारण विषयाक्रियन्ते । 4 (क) तत्वार्य 1/27 रूपिववधे । (ख) वही, 1/28 तदनन्तभागो मन पर्ययस्य । 5 तत्वार्थ, 1/29 સર્વદ્રવ્યપર્યાયેષુ વેવસ્યા.
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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