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________________ ( 157 ) है कि ये 'कटगेरी' के आसपास के निवासी थे। यह अब भी एक साधारण सा गाव है, जिसके भानावशेषो से यह ज्ञात होता है कि यह कभी बडा शहर रहा होगा। ये नन्दिसघ के अरू गल अन्वय के प्राचार्य श्रीमाल के शिप्य मतिसागर के शिष्य थे। इनके गुरुबन्धु का नाम दयापाल था। 'वादिराज यह एक तरह की पदवी थी। उनका यथार्थ नाम क्या था, यह अज्ञात है। 'पट्तकपण्मुख' 'स्याद्वादविद्यापति' और 'जगदेकमल्लवादी' ये इनकी उपाधिया थी। 41 वादामसिंह (ई 8-9) यह पदवी है नाम नहीं। इस पदवी के धारक अनेक प्राचार्य हुए है । ये श्राचार्य पुष्यषण अकलक के शिष्य वादीमसिंह है। प्राचार्य पुष्यषेण अकलक के गुरुभाई थे। वादीभसिंह का मूल नाम क्या था, यह अजात है। उनके दो अन्य उपलब्वे हैं । स्थाबाद सिद्धि और 2 नवपदार्थ निश्चय । 42 विधानन्दि (विद्यानन्द) (ई 775-840) जन ताकिको मे इनका विशिष्ट स्थान था। ये मगध की राज्य सभा के प्रसिद्ध विद्वान थे । ये एक वार पावनाथ भगवान के मदिर मे चरित्रभूषण मुनि के मुख से श्राचार्य ममतभद्र द्वारा रचित देवागमस्तोत्र का पा० सुनकर प्रतिवृद्ध हुए। माना जाता है कि ये अकलक की आम्नाय मे उनके कुछ ही समय पश्चात् हुए थे। इनकी प्रमुख रचनाए है 1 प्रमाणपरीक्षा 2 प्रमाणमीमासा 3 प्रमाणनिर्णय 4 प्राप्तपरीक्षा 5 जल्पनिर्णय 6 नवविवरण 7 युक्त्यनुशासन 8 अष्टसहस्त्री 9 तत्वार्थश्लोकपातिक 10 पत्रपरीक्षा। ये दक्षिण के महान् टीकाकार ये । इन्होने समतभद्र की प्राप्तमीमासा श्रीर उस पर अकलकदेव के अटशती भाष्य को सबद्ध कर अष्टसहनी नामक अन्य की रचना की। इनका विद्यानन्द महोदय' ग्रन्य अनुपलब्ध है। 43 विमलदास (ई 15) ये जन गृहस्य थे। इनका निवास स्थान तेजानगर और गुरु अनन्तदेव स्वामी ये। उन्होने 'सप्तभगीतर गिरणी' की रचना की । 8 पट्कर्णपण्मुख स्याद्वादविद्यापतिगलु जगदेकयल्लवादिगलुएतिमिद श्रीवादिराजदेवरम् - मि राइस द्वारा सपादित नगर तालुक्का के इस्किप्सन न 36।
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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