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________________ ( 156 ) इतनी सरल नही बनी। फिर अनेक प्राचार्यों ने इस पर पञ्जिका और टिप्पण लिखे। 36 राजेश्वरसूरी (ई 14-15) ये मलवारी अभयदेवमूरी के सतानीय हपपुरीय मलवारी गच्छ के प्राचार्य तिलकसूरी के शिष्य ये। उन्होने विक्रम की पन्द्रहवी शताब्दी के पहले दूसरे दशक मे रत्नावतारिका ५२ पनिका लिखी। उन्होंने स्याद्वादकलिका, पट्दर्शनसमुच्चय, आदि अनेक ग्रन्यो की रचना की। 37 रामचन्द्रसूरी (ई० 1 3 वी) ये कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्र के शिप्य ये । इन्होंने 'व्यतिरेकहानिशिका' अन्य लिखा । 38 वसुनन्दि (ई० 11-12) ये श्री नेमिचन्द्र के शिष्य थे। इनका अपर नाम 'जयसेन' या। इनकी कृतिया हैं - प्राप्तमीमामावृत्ति, मूलाचारवृत्ति, वस्तुविधा, श्रावकाचार आदि-आदि । श्रावकाचार का अपर नाम 'उपासकाध्ययन' है । इस ग्रन्य के अन्त में इन्होने अपनी गुरु परम्परा का उल्लेख किया है। उनके अनुसार श्री कुन्दकुन्द की परम्पर। मे श्रीनन्दी नाम के प्राचार्य हुए । उनके शिष्य थे नयनन्दी और नयनन्दी के निप्य थे श्रीनेमीचन्द्र । ये इनके गुरु थे। 39 वादिदेवसूरी (ई० 1087-1170) ये श्रीमुनिचन्द्रसूरी के पट्टशिष्य ये । इनका जन्म गुर्जर देश के प्रावाटवंश मे वि स 1087 मे हुअा। ये नौ वर्ष की अवस्था ( 1096 ) मे भडीच नगर मे दीक्षित हुए और इकतीस वर्ष की अवस्था मे वि स 1118 मे प्राचार्य पद ५२ आसीन हुए । अहिलपुर मे राजा जयसिंह सिद्धगज की सभा मे दिगम्बर विद्वान् कुमुदचन्द्र से वाद हुप्रा और उसके बाद ही उन्हें 'वादी' की उपाधि प्राप्त हुई । माणिक्यनन्दि के परीक्षामुख का परिवर्धन कर इन्होने प्रमानयतत्वालोक की रचना की और उस पर 'स्याद्वादरत्नाकर' नामक बृहत्काय व्याख्या लिखी। इनका स्वर्गवास 1117 मे हुआ। भद्रेश्वर इनके पट्टवर शिष्य हुए और लभ प्रमुख शिष्य । रत्नप्रभ के स्याद्वादनाकर का मक्षिप्तरूप रत्नाकरवितारिका के नाम से प्रसिद्ध है। 40 पादिराजसूरी (ई 11) ये दक्षिण के सोलकी 41 के प्रसिद्ध नरे। जयसिंह (प्रयम) की राजममा के सम्मानित वादी थे। इनके द्वारा रचित पाश्र्वनाथ चरित्र की प्रशस्ति से पता लगता
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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