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________________ ( 158 ) -4 तिरूरी (ई 11) पूतल गच्छ के प्राचार्य वर्धमान के शिष्य थे। उन्होने मिद्धसेन के यायावतार पर वातिक की रचना की और उस पर टीका भी लिखी। इसके चार करण है- प्रमाण, प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम । 45 सातिपेरण (ई 13) उनका 'प्रमेयरत्नमार' नामका अन्य उपलब्ध है । 416 शिवार्य ये भगवती श्राराधना के कर्ता है । उन्होंने संस्कृत मे 'सिद्धिविनिश्चय' नामका न्य लिखा। 47 शुभचन्द्र (ई० 1516-1556) ये विजयकीति के शिष्य तथा लक्ष्मीचन्द्र के गुरु थे। इन्हे ‘पटभापा कवि' की उपाधि थी। इन्होंने अनेक ग्रन्यो की रचना की। उनमे से कुछ ये है प्राकृत व्याकरण, अगपण्यत्ति, समस्यावदनविकार, ५३दर्शनप्रमाणप्रमेयसग्रह, स्वामिकातिकेयानुप्रेक्षा की टीका, आदि-श्रादि । 48 समन्तभद्र (ई० 2-3) ये उ. पु. के राजा के पुत्र थे। इनका जन्मकालीन नाम शातिवर्मा था । ये महाबादी ये । इनकी द विशेषण प्राप्त थे। प्राचार्य, कवि, वादिरा, पडित, दंवन, मिषक, मात्रिक, तात्रिक, प्रामासिद्ध श्रीर सिद्धमा स्वत । इन विरोपणो से इनकी बहुश्रुतता का सहज वोध हो जाता है । इनकी मुस्य रचनाए है | पट्टागम के प्रथम पाच वडो ५. टीका, 2 कर्मप्राभृत टीका 3 गधहम्तिमहाभाष्य 4 प्राप्तमीमामा 5 युक्त्यनुशासन 6 तत्त्वानुशासन 7 स्वयभूस्तोत्र 49 समन्तभद्र (लघु) (ई० 13) उन्होंने अष्टमहनी (विद्यादित) पर 'विपमपदतात्पर्यटीका' लिखी है ।
SR No.010272
Book TitleJain Nyaya ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherNathmal Muni
Publication Year
Total Pages195
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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