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________________ ८४ जैन कवियों के ब्रजभाषा-प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन पूर्वक किया है। रूप-चित्रण का तो कवि चितेरा है। उसने कृति के मध्य एक स्थल पर 'बारहमासा' के रूप में बहुविध प्रकृति के रम्य चित्र उतारे हैं। 'नेमिनाथ चरित' दोहा-चौपई छन्द में लिखा गया है। कहीं-कहीं संगीतात्मक ढालों के प्रयोग से काव्य में रमणीयता उभर उठी है । उपर्युक्त प्रबन्धकाव्यों के अतिरिक्त कवि जगतराम कृत 'लघु मंगल',' विश्वभूषण कृत 'निर्वाण मंगल'२ (१७२६), अजयराज पाटनी कृत 'यशोधर चौपई', 'चरखा चउपई', 'शिवरमणी विवाह आदि-आदि अठारहवीं शती की सामान्य रचनाएं हैं। (उन्नीसवीं शताब्दी) आश्चर्य का विषय है कि इस शती में बहुत थोड़े से प्रबन्धकाव्य ही निर्मित हुए। उनमें कवि भारामल्ल कृत 'शीलकथा', 'चारुदत्त चरित्र', 'सप्तव्यसन चरित्र'; मनरंगलाल कृत 'नेमिचन्द्रिका' आदि उत्तम प्रबन्ध रचनाएँ हैं। शीलकथा यह कवि भारामल्ल की रचना है। रचना पर रचनाकाल अंकित नहीं है, किन्तु कवि ने 'चारुदत्त चरित' संवत् १८१३ में तथा 'सप्त व्यसन चरित' १८१४ में रचा था, अत: 'शीलकथा' का रचनाकाल १६ वीं शती का प्रथम चरण सिद्ध होता है। 1. जैन मन्दिर बड़ौत, गुटका नं० ५४ । लूणकरण जी का मन्दिर, जयपुर, गुटका नं० १६१ । • बधीचन्द जी का जैन मन्दिर, जयपुर, गुटका नं ३८ । वही, गुटका नं० १३४ । वही, गुटका नं० १५८, वेष्टन नं० १२७५ । ५. भारतीय जैन-सिद्धान्त प्रकाशिनी संस्था, कलकत्ता से प्रकाशित । ७. देखिए---कामताप्रसाद जैन :हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास,पृष्ठ २१८। चौराहे का जैन मन्दिर, बेलनगंज, आगरा से प्राप्त हस्तलिखित प्रति (ग्रन्थ संख्या ६६) के आधार पर ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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