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________________ परिचय और वर्गीकरण ३ इसका प्रमुख रस शान्त है । अन्य रसों के सामंजस्य ने कृति को साहित्यिकता प्रदान करने में सहयोग दिया है। विविध वस्तु-वर्णनों की दृष्टि से रचना बड़ी अच्छी बन पड़ी है । इसमें जीवन के विविध पक्षों का सन्निवेश है । इसकी शैली प्रत्येक रस के साथ बदलती दिखायी देती है। इसमें तीनों गुणों के साथ अनेक सूक्तियों एवं मुहावरों का विपुलता से प्रयोग हुआ है । भाषा-शैली की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस कृति में छन्दों के सहज नर्तन के साथ अलंकारों की सहज झंकृति सुनायी पड़ती है। __ यह काव्य दोहा-चौपई (१५ मात्रा) छन्द में रचा गया है । आवश्यकतानुसार अडिल्ल, घनाक्षरी, छप्पय, पद्धरी, चाल, नरेन्द्र (जोगीरास), सोरठा, कवित्त इकतीसा, कुसुमलता, हरगीतिका, बेली चाल, गीता आदि छन्दों का भी प्रयोग किया गया है । नेमिनाथ चरित' यह अजयराज पाटनी की २६४ पद्यों की एक सरस प्रबन्ध कृति है। कवि को इसके प्रणयन की प्रेरणा अम्बावती (आमेर-जयपुर) के जैन मन्दिर में प्रतिष्ठित भगवान नेमिनाथ की मंजुल मूर्ति के दर्शन से मिली। रचना पर रचनाकाल विक्रम संवत् १७६३ अंकित है।' इसका मूल उद्देश्य नेमिनाथ के चरित्र को द्योतित करना है। इसमें नेमिनाथ के साथ ही राजुल के चरित्र का औदात्य भी द्रवणशील है। कवि ने काव्य में विविध वस्तु-वर्णनों का नियोजन बड़ी सफलता १. यह जयपुर के ठोलियों के दिगम्बर जैन मन्दिर में गुटका नं १०८ में निबद्ध है। २. नेमिनाथ चरित, अन्तिम पृष्ठ । ३. वही ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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