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________________ परिचय और वर्गीकरण इस काव्य के संक्षिप्त कथानक में एक अद्भुत दीप्ति है। इसमें मानवमन के रहस्योद्घाटन में रस की निर्झरिणी प्रवाहित हो रही है । कथा की अखण्ड धारा के बीच मानव-मनोभावों एवं नाना क्रिया-कलापों का चित्रांकन बड़ा मनोहर बन पड़ा है । ८५ 'शीलकथा' की नायिका मनोरमा और उसका नायक सुखानन्द दोनों ही शील की शाश्वत ज्योति के प्रतिरूप हैं। दोनों का चरित्र करुणा की तरल तरंगों से भीगा हुआ है । इसकी शैली उदात्त और गरिमामयी है । अनलंकारिक भाषा में सहज प्रवाह, माधुर्य और रसाभिव्यंजना का गुण है । यह दोहा चौपई में रचित है । कथानक को विविध मोड़ देने के लिये सोरठा, गीता, गीतिका, अडिल्ल, पद्धरी, सवैया तेईसा, चाल आदि छन्दों का प्रयोग किया गया है । सप्त व्यसन चरित्र' यह सात अधिकारों में विभक्त है । प्रत्येक अधिकार में अलग-अलग कथा और अलग-अलग नायक हैं । यह रचना एक समग्र प्रबन्ध न होकर प्रबन्ध सप्तक है । जैन परम्परा में मानव को अध: पतन की ओर ले जाने वाले सप्त व्यसन' माने गये हैं । इस काव्य में इन सप्त व्यसनों का विधिवत विश्लेषण हुआ है । सप्त अधिकारों में समाविष्ट सप्त कथाओं के माध्यम से पृथक् १. ग्रंथांक ५६, चौराहे का जैन मन्दिर, बेलनगंज, आगरा से प्राप्त हस्तलिखित प्रति । अब भाषू सातों अधिकार । जुआ मांस मद गनिका भार । पाप सिकार चोरि परनारि । सात विसण जग में दुषकारि ॥ २. - - सप्त व्यसन चरित्र, पद्य, पृष्ठ १।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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